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Monday, February 29, 2016

नवकार मंत्र गिनने के लाभ

नवकार मंत्र का भावपूर्वक एक
अक्षर बोलने पर :- सात सागरोपम
जितने पापो का नाश होता है ।

       ..."नमो अरिहंताणं"...

इतना एक पद बोलने पर :- 50
सागरोपम जितने पाप नष्ट होते है ।.

संपूर्ण नवकार मंत्र गिनने से 500
सागरोपम जितने पाप
नष्ट होते हैं .

एवं सुबह उठकर आठ
नवकाR र्गिनने से 4000 सागरोपम
जितने पाप नष्ट होते हैं।

संपूर्ण नवकार वाली गिननेसे
54000
सागरोपम जितने पाप नष्ट होते है।

सागरोपम अर्थात् गिनने में कठिनाई हो
इतने अरबों वर्ष। यह नवकार
महामंत्र शक्तिदायक, विध्नविनाशक,
प्रभावशाली, चमत्कारी है।

गर्भवती स्त्रियों के लिए इस मंत्र
का जाप करना अति उत्तम है।

जन्म के समय बालक के कान
में यह मंत्र सुनाने से उसके जीवन
में समृद्धि प्राप्त होती है

एवं मृत्यु के समय सुनाने पर सदगति
प्राप्त होती है।

दॄढ विश्वास तथा शुद्ध मन से इस
मंत्र का जाप नित्य करने से विश्व में ,
परिवार में तथा मन में शांति रहती है ,

मन स्वच्छ और निर्मल बनता है ।


  💐 नमो अरिहँताणँ 💐
   🌷 नमो सिध्णामँ 🌷
  🌻नमो आयरियाणँ 🌻
  🍀 नमो उवझायाणँ 🍀
🌹नमो लोए सव साहुणँ,🌹
 🌸 ऐसो पँच नमोकारो,🌸
 🌺 सव पावपँणासनो, 🌺
 🌺 मँगलाणँच सवेसिँह,🌺
 🌸 पढमँम होइ मँगलम.🌸

सबको भेजिये.ऐसे मैसेज़
बार-बार नहीं लिखे जाते!

"जय" बोलने से मन को शांति मिलती हैं...

"जिनेन्द्र " बोलने से शक्ति मिलती हैं....

" जय जिनेन्द्र " बोलने से भक्ति  मिलती हैं....

 भक्ति से "महावीर" मिलते हैं...
और महावीर मिलते हैं तो 
"पापों  से  मुक्ति"  मिलती  है ।

इसलिये  जब भी  मिलो 
"जय जिनेन्द्र " बोलो ...

जय जिनेन्द्र


Saturday, February 27, 2016

नवकार के 68 अक्षर पर तीर्थ नाम

नवकार के 68 अक्षर पर तीर्थ नाम:
न - नगपूरा तीर्थ मो - मोहनखेड़ा तीर्थ अ - अलाहाबाद तीर्थ रि- रिंगणोद हं - हत्थूडी तीर्थ ता - तारंगा तीर्थ णं-नांदिया तीर्थ |
न - नाडोल जैन तीर्थ मो - मोहना तीर्थ सि - सिरणवा तीर्थ द्धा-धमडका तीर्थ णं -नंदीश्वर द्वीप
न- नलिया तीर्थ मो - मोड़पुर तीर्थ आ- आरासणा य- यशनगर तीर्थ रि-रींछेड या - यादवपुर तीर्थ णं-नारलाई
न - नदबई तीर्थ मो - मोही तीर्थ. उ -ओसिया तीर्थ व- वरमाण तीर्थ ज्झा-जकोड़ा तीर्थ या - यादगिरी तीर्थ णं-नांदगिरी तीर्थ
न- नरोडा तीर्थ मो - मोठेरा तीर्थ लो-लोटाणा तीर्थ ए- ऐल्लुर तीर्थ सा-सांचोर तीर्थ व्व- वरकाणा तीर्थ सा - सावत्थी तीर्थ हू - हुशियारपुर तीर्थ णं- नंदासण तीर्थ
ए- एलीचपुर तीर्थ सो - शोरीपुर तीर्थ पं- राजगृही तीर्थ च - चवलेश्वर तीर्थ न- नवरोई तीर्थ मु - मुछाला महावीर तीर्थ क्का - काकंदी तीर्थ रो-रोहिडा तीर्थ
स - सवणा तीर्थ व्व - वढवाण तीर्थ पा- पावापुरी तीर्थ वा- वाराणसी तीर्थ प्प - पटणा तीर्थ ना - नागार्जुननगर तीर्थ स - सरढव तीर्थ णो - नोखामंदी तीर्थ
म - मंगलपुर तीर्थ ग - गजाग्रपद तीर्थ ला- लाज तीर्थ णं - नंदराई तीर्थ च - चलोडा तीर्थ स - भरूच तीर्थ व्वे - वेलार तीर्थ सि - सिंहपूरी तीर्थ
प - परोली तीर्थ ढ - ढवाणा तीर्थ मा - मांडल तीर्थn ह - हस्तगिरी तीर्थ व - वडगाम तीर्थ इ - ईडर तीर्थ मं - मंडावगढ़ तीर्थ ग - हस्तिनापुर तीर्थ लं - लक्ष्मणी तीर्
Jai jinendra

Friday, February 26, 2016

world wide jain derasar list


1. JAPAN - KOBE Bhagwan Mahavir Swami Jain Temple Kitano - Cho, 3 Chome Chuo - ku Kobe, JAPAN Tel. Nos. (81) 78 241- 5995
2. JAPAN – TOKYO Tokyo Derasar 1-10 - 12 Higashi Ueno Taito Ku Tokyo 110 - 0015 JAPAN
3. CHINA – SHENZHEN Shenzhen Temple Xingkan Hong, Building No. 7 Flat no 101, Cuizhu Road Shenzhen, CHINA Temple Tel. No. + 86 -755 - 25782814 Contact Person: Pratickbhai Shah - Mobile No. + 86 - 13113811976
4. TAIWAN -- TAIPEI Taipei Temple Lane - 63, Tun Hwa South Road, Sec - 2 No:- 7, 20th Floor, Taipei, TAIWAN Contact Person: Rakesh Shah - Mobile No. + 886 - 932026425 Manoj Jhaveri – Mobile No. + 886 - 932181286
5. HONG KONG Shree Hongkong Jain Sangh Ltd., Flat No. 50, 7 th Floor, Grand Building 50 - 52, Granville Road Tsim Sha Tsui, Kowloon HONG KONG Temple Tel. No. + 852 -2739 9955 Contact Person: Bharat Mehta - Mobile No. + 852 - 9455 5935
6. MALAYSIA Shantiniketan Foundation Malaysia Paras Villa, 15, Persiaran Bekor 4 First Girden, 30100 Ipoh, Perak MALAYSIA Tel. No. 605 - 5267801 Fax No. 605 - 5279848 E-mail: shantiniketan_my@hotmail.com
7. BANGKOK - THAILAND
i. Shree Sambavnath Jain Derasar, Bangkok 191/24, Milindsuta Building Soi Putto - Osot, Behind Suriwong Road Bangrak, Bangkok, THAILAND –10500
ii. Shree Sheetalnath Jain Ghru Jinalay 315 / 440, 8th Floor Fortune Condo Building 4 Sathu Pradit Soi 24 (Soi Wat Pho Men ) Yannawa, Bangkok, THAILAND -10120 Contact Person: Devang Sanghavi + 662 - 6741402, + 6681 - 9389384
8. UNITED KINGDOM - LEICESTER 32, Oxford Street Leicester Le1 5xu UNITED KINGDOM
9. UNITED KINGDOM - LONDON Shree Mahavir Swami Oshwal Centre, Potters Bar, LONDON
10. UNITED KINGDOM - MIDDLESEX Mahavir Swami Jain Temple 1, The Broadway Wealdstone Harrow, Middlesex, UK For Information:- Contact Mr. Vijen Shah -020 - 8566 7100 Email: Vijen3@aol.com
11. UNITED STATES - ALLENTOWN -ALLENTOWN JAIN TEMPLE MULNAYAK Shree Abhinandan Swami 4200 Airport Road Allentown, PA 18103 TEMPLE / PUJARI Tel Nos. (215) 264 – 2810 From US - 22, take Exit for Airport Road (Rt. 987N) toward Airport. Pass three traffic lights. Within half a mile, the temple (with Ohm sign) will be on your right.
12. UNITED STATES – BOSTON – JAIN TEMPLE OF GREATER BOSTON MULNAYAK Shree Abhinandan Swami 15 Cedar Street Norwood MA - 02062
13. UNITED STATES – CALIFORNIA –HOUSTON JAIN TEMPLE MULNAYAK Shree Abhinandan Swami CALIFORNIA
14. UNITED STATES – CALIFORNIA –JAIN CENTER OF NORTHERN CALIFORNIA MULNAYAK Shree Adeshvar From 880 (San Jose): Take 880 North to Great Mall Exit East, Turn Left at Main St. Jain Bhavan will be on your right side at number 722.
15. UNITED STATES - CALIFORNIA - JAIN TEMPLE OF CALIFORNIA MULNAYAK Shree Abhinandan Swami 722 South Main Street Milpitas CA - 95035
16. UNITED STATES - CHICAGO - JAIN TEMPLE OF METROPOLITAN CHICAGO MULNAYAK Shree Abhinandan Swami Jain Temple of Metropolitan Chicago, USA
17. UNITED STATES - DETROIT - JAIN TEMPLE OF GREATER DETROIT MULNAYAK Shree Abhinandan Swami Jain Society of Greater Detroit 29278 W 12 Mile Rd., Farmington Hills MI - 48334 - 4108
18. UNITED STATES - NEW JERSEY -NEW JERSEY (NORTH) JAIN TEMPLE MULNAYAK Shree Rishbhdev 233 Runnymede Road Essex Fells, NJ - 07006 Tel. No. (609) 662-1076 / (609) 722-1919-424-4897
19. UNITED STATES - NEW JERSEY -SIDDHACHALAM MULNAYAK Shree Simandar Swami 65, Mud Pond Road Blairstown NEW JERSEY - 07825 - (908) 362 - 9793
20. UNITED STATES - NEW JERSEY - THE JAIN SANGH MULNAYAK Shree Mahavir Swami 3401 Cooper Ave – Pennsauken NJ - 08109
21. UNITED STATES - NEW YORK -KAILASH PARVAT JAIN TEMPLE Shree Abhinandan Swami 7020, Polk Street 16, Guttengerg
,, N. J - 07093 U. S. A. (This Temple Is Managed By Shri Kumar Shah)
22. UNITED STATES - NEW YORK - ITHACA STREET JAIN TEMPLE 43 - 11 Ithaca Street Elmhurst NY - 11373 Phone: (718) 391-9170
23. UNITED STATES - PHILADELPHIA -PHILADELHPIA JAIN TEMPLE MULNAYAK Shree Abhinandan Swami 6515, Bustleton Avenue PHILADELPHIA, PA Phone: (215) 537 - 9537 / (215) 561 - 0581
24. KENYA - NAIROBI - JAIN TEMPLE MULNAYAK Shree Adeshvar Digambar Jain Chityalaya Nairobi – Kenya P. B. – 41217 Nairobi, AFRICA
25. CANADA - EDMONTON - EDMONTON MULNAYAK Shree Mahavir Swami 14225 - 133 Avenue EDMONTON
26. CANADA - ONTARIO - JAIN SOCIETY OF TORONTO MULNAYAK Shree Mahavir Swami 48 Rosemeade Avenue Etobicoke, Ontario CANADA
27. CANADA - TORONTO - TORONTO, CANADA MULNAYAK Shree Mahavir Swami Jain Society Of Toronto 247 Parklawn Road Toronto Ontario, CANADA Phone: (416) 273 - 9387 Temple (416) 251 - 8112
28. PAKISTAN Sindh Pradesh Tharparkar District Nagarparkar City PAKISTAN
29. COMBODIA Jangkorvat City COMBODIA 30 ABHISHEK BAID

कैसे बनाए घर को भाग्य वर्धक ?

1. घर हो वास्तु अनुसार।
2. घर का द्वार उत्तर, पश्चिम या पूर्व दिशा में हो।
3. घर सदा साफ-सुधरा रखें।
4. घर के भीतर अनावश्यक वस्तुएं नहीं रखें।
5. घर में ढेर सारे देवी और देवताओं के चित्र या मूर्तियां न रखें।
6. घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें या उसे जल का स्थान बनाएं।
7. दरवाजे के ऊपर भगवान गणेश का चित्र और दाएं-बाएं स्वस्तिक के साथ लाभ-शुभ लिखा हो।
8. घर में मधुर सुगंध और संगीत से वातावरण को अच्छा बनाएं। रात्रि में सोने से पहले घी में तर किया हुआ कपूर जला दें।

contact : +918000456677

Monday, February 15, 2016

कमजोर ग्रह को बल कैसे प्रदान करे?

नवग्रहों की पौराणिक सुंदर प्रार्थना
नवग्रहों को एक साथ प्रसन्न करना थोड़ा मुश्किल है। आप अपनी कुंडली के कमजोर ग्रहों को पहले प्रसन्न कीजिए। प्रस्तुत है वेदों में वर्णित नवग्रह प्रार्थना। ग्रहों के नाम-मंत्रों से बनी यह प्रार्थना तुरंत असरकारी और चमत्कारी है-
सूर्यदेव-
पद्मासन: पद्मकरो द्विबाहु:
पद्मद्युति: सप्ततुरङ्गवाह:।
दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी
मयि प्रसादं विदधातु देव।।
हे सूर्यदेव! आप रक्तकमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, आपके दो हाथ हैं तथा आप दोनों हाथों में रक्तकमल लिए रहते हैं। रक्तकमल के समान आपकी आभा है। आपके वाहन-रथ में सात घोड़े हैं, आप दिन में प्रकाश फैलाने वाले हैं। लोकों के गुरु हैं तथा मुकुट धारण किए हुए हैं, आप प्रसन्न होकर मुझ पर अनुग्रह करें।
चन्द्रमा-
श्वेताम्बर: श्वेतविभूषणश्च
श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु:।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरद: किरीटी
श्रेयांसि मह्यं विदधातु देव।।
हे चन्द्रदेव! आप श्वेत वस्त्र तथा श्वेत आभूषण धारण करने वाले हैं। आपके शरीर की कांति श्वेत है। आप दंड धारण करते हैं, आपके दो हाथ हैं, आप अमृतात्मा हैं, वरदान देने वाले हैं तथा मुकुट धारण करते हैं, आप मुझे कल्याण प्रदान करें।
मंगल-
रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी
चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।
धरासुत: शक्तिधरश्च शूली
सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
जो रक्त वस्त्र धारण करने वाले, रक्त विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, मेष वाहन, गदा धारण करने वाले, पृथ्‍वी के पुत्र, शक्ति तथा शूल धारण करने वाले हैं, वे मंगल मेरे लिए सदा वरदायी और शांत हों।
बुध-
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दण्डधरश्च हारी।
चर्मासिधृक् सोमसुत: सदा मे
सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च।।
जो पीत वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, दंड धारण करने वाले, माला धारण करने वाले, ढाल तथा तलवार धारण करने वाले और सिंहासन पर विराजमान रहने वाले हैं, वे चंद्रमा के पुत्र बुध मेरे लिए सदा वरदायी हों।
बृहस्पति-
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो देवगुरु: प्रशान्त:।
दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च
तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्।।
जो पीला वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, अत्यंत शांत स्वभाव वाले हैं तथा जो दंड, कमण्डलु एवं अक्षमाला धारण करते हैं, वे देवगुरु बृहस्पति मेरे लिए वर प्रदान करने वाले हों।
शुक्र-
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:।
तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च
जयञ्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्मम्।।
जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, श्वेत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वरूप, अक्षसूत्र तथा जयमुद्रा धारण करने वाले हैं, वे देत्यगुरु शुक्राचार्य मेरे लिए वरदायी हों।
शनिदेव-
नीलद्युति: शूलधर: किरीटी
गृध्रस्‍थितस्त्राणकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्तो
वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी।।
जो नीली आभा वाले, शूल धारण करने वाले, मुकुट धारण करने वाले, गृध्र पर विराजमान, रक्षा करने वाले, धनुष को धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वभाव एवं मंद गति वाले हैं, वे सूर्यपुत्र शनि मेरे लिए वर देने वाले हों।
राहु-
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी
करालवक्त्र: करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहु:
सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिए वरदायी हों।
केतु-
धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत्
गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषिताङ्ग
सदास्तु मे केतुगण: प्रशान्त:।।
धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्‍थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबन्द से सुशोभित अंगों वाले तथा शांत स्वभाव वाले केतुगण मेरे लिए सदा वर प्रदान करने वाले हों।

शत्रु और कोर्ट कचहरी में विजय कैसे पाए?

दस महाविद्या - देवी बगलामुखी
देवी बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। माता बगलामुखी का संबंध ग्रह वृहस्पति अर्थात गुरु से है। देवी बगलामुखी का वर्ण पीला है जो गुरु वृहस्पति को संबोधित करता है। देवी बगलामुखी की उपासना शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए की जाती है।
अतः ये तीनों स्थान कुण्डली के त्रिक भाव कहे गए हैं। कुण्डली का बारहवां स्थान व्यक्ति के खर्चों और गुप्त शत्रुओं को संबोधित करता है। कुण्डली का छठा स्थान शत्रु और रोगों को संबोधित करता है तथा कुण्डली का आठवां स्थान मृत्यु को संबोधित करता है। देवी बगलामुखी की साधना से व्यक्ति को शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है, धन हानी से छुटकारा मिलता है और रोगों का शमन होता है तथा साधक के प्राणों की रक्षा होती है।
मंत्र:
ॐ ह्लीँ बगलामुखीं सर्वदुष्टानाम् वाचम् मुखम् पदम् स्तंभय जिह्वाम् कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्लीँ ओं स्वाहा।
रुद्रमाल तंत्र अनुसार माता बगलामुखी शिव की अर्धांगिनी हैं तथा पीत वरण (पीले रूप) में इन्हें बगलामुखी और भगवान शंकर को बाग्लेश्वर कहा जाता है। इनका बीज मंत्र है "ह्लीँ" इसी बीज से देवी दुश्मनों का पतन करती है। देवी बगलामुखी की साधना को दुशमनों का सफाया करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बगलामुखी माता अपने भक्तों के शत्रुओं की बोलती बंद कर देती हैं जिससे वो भक्तों के विरूद्ध कुछ बोल नहीं पाते और दुश्मनों के सोचने विचरने की शक्ति का भी हनन कर देती हैं। जिससे विरोधी भक्तों के बारे मे कोई षडयंत्र भी नहीं रच पाते। मां बगलामुखी का यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णन हैं की इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। देवी बगलामुखी की साधना से भक्तों की दुष्टों से रक्षा होती है तथा मुकदमे और कोर्ट केस में जीत मिलती है।
देवी बगलामुखी से संबंधित अचूक उपाय
1. देवी बगलामुखी के चित्र के आगे पीले कनेर के फूल चढाएं।
2. गुरुवार के दिन 8 ब्राहमणों को इच्छानुसार चना दाल दान करें।
3. सरसों के तेल में हल्दी मिलाकर देवी बगलामुखी के चित्र के आगे दीपक जलाएं।
4. सैंधें नमक से देवी बगलामुखी का "ह्लीं शत्रु नाशय" मंत्र से हवन करें।
5. लाल धागे में 8 नींबू पिरोकर देवी बगलामुखी के चित्र पर माला चढ़ाएं।
6. देवी बगलामुखी के चित्र के आगे पीली सरसों के दाने कर्पूर में मिलाकर जलाएं।
7. गुरुवार के दिन सफ़ेद शिवलिंग पर "ह्लीं बाग्लेश्वराय" मंत्र बोलते हुए पीले आम के फूल चढ़ाएं।
8. शनिवार के दिन काले रंग के शिवलिंग पर हल्दी मिले पानी से अभिषेक करें।
9. सफ़ेद शिवलिंग पर "ॐ ह्लीँ नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए शहद से अभिषेक करें।
चेतावनी - यहाँ लिखी गई तंत्र से जुडी सभी साधनाये साधको के ज्ञानवर्धन मात्र के लिए दी गई है ! यदि कोई साधक कोई भी साधना अथवा प्रयोग करना चाहता है तो गुरु दीक्षा , और गुरु के मारगदर्शन में करे ! बिना गुरु दीक्षा और बिना गुरु आज्ञा भूल कर भी कोई साधना अथवा प्रयोग न करे !

Saturday, February 13, 2016

कालसर्प योग

  • क्या हे कालसर्प योग?
कालसर्प एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं।

  • कैसे बनता है कालसर्प योग? 
जब जन्म कुंडली में सभी ग्रह राहू और केतु के बिच में हो तो कालसर्प योग का निर्माण होता है |

  • स्थितियां
  • जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।
  • जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।
  • जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।
  • जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
  • चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।
  • जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है।
  • जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
  • जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।
  • जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।
  • जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।
  • जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है।
  • यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है।
  • जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
  • जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान भी रहना चाहिए।
  • जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।
  • जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंधित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
  • जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति 1ले 3रे 4थे 5वें 6ठे 7वें 8वें 11वें या 12वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।
  • जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
  • जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (1ले 4थे 7वें 10वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
  • जब शुक्र दूसरे या 12वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
  • जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
  • जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
  • जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
  • जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो जाता है।
  • जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
  • जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।
  • जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दिदायक होता है।
  • जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती। 
  • कालसर्पयोग के प्रकार
 कालसर्प योग के प्रमुख भेद कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्तुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -
  

अनन्त कालसर्प योग-

जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डांवाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चीज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।

अनुकूलन के उपाय -
  • विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
  • देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
  • शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
  • हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
  • महामृत्युन्जय मन्त्र का जाप करने से भी अनन्त काल सर्प दोष का शान्ति होता है।
  • गृह में मयूर (मोर) पंख रखें ।

 

कुलिक कालसर्प योग-

राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। परंतु आर्थिक परेशानियों की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्रों द्वारा धोखा, संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतर गिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। परंतु इस फल को वह पूर्णतय: सुखपूर्वक भोग नहीं पाता है। ऐसे जातकों को इस योग की वजह से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपायों का अवलंबन लेना चाहिए।

अनुकूलन के उपाय -

  • विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
  • देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
  • शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।
  • हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
  • श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
  • शनिवार औ मंगलवार का व्रत रखें और शनि मंदिर में जाकर भगवान शनिदेव कर पूजन करें व तैलाभिषेक करें, इससे तुरंत कार्य सफलता प्राप्त होती है।
  • राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें

वासुकी कालसर्प योग-

राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण उसे प्राय: धोखा देते रहते हैं। घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक धान खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य हो जाती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता संदिग्धा रहती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से प्रतिकूलता रहती है। जातक को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्रा में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। यदि जातक अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से उत्ताम भाग्य का निर्माण भी होता है और शुभ कार्य सम्पादन हेतु उसे कई अवसर प्राप्त होते हैं।

अनुकूलन के उपाय -

  • नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
  • प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
  • महामृत्युंजय मंत्रों का जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढ़ायें।
  • किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्रा को अभिमंत्रित कर धारण करें।

शंखपाल कालसर्प योग

राहु चौथे स्थान में और केतु दशम स्थान में हो इसके बीच सारे ग्रह हो तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है। इससे घर-द्वार, जमीन-जायदाद व चल- अचल संपत्तिा संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं और उससे जातक को कभी-कभी बेवजह चिंता घेर लेती है तथा विद्या प्राप्ति में भी उसे आंशिक रूप से तकलीफ उठानी पड़ती है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। सवारी एवं नौकरों की वजह से भी कोई न कोई कष्ट होता ही रहता है। इसमें उन्हें कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य होते हुए भी वह कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाता है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है। कार्य के क्षेत्रा में भी अनेक विघ्न आते हैं। पर वे सब विघ्न कालान्तर में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। बहुत सारे कामों को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम प्राय: पूरा नहीं हो पाता है। इस योग के प्रभाव से जातक का आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिस कारण आर्थिक संकट भी उपस्थित हो जाता है। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को व्यवसाय, नौकरी तथा राजनीति के क्षेत्रा में बहुत सफलताएं प्राप्त होती हैं एवं उसे सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी मिलती है। यदि उपरोक्त परेशानी महसूस करते हैं तो निम्नलिखित उपाय करें। अवश्य लाभ मिलेगा।

अनुकूलन के उपाय -
  • शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें।
  • शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को जल में तीन बार प्रवाहित करें।
  • 86 शनिवार का व्रत करें और राहु, केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। और हनुमान जी को मंगलवार को चौला चढ़ायें और शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
  • किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें।
  • सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
  • शुभ मुहूर्त में सर्वतोभद्रमण्डल यंत्रा को पूजित कर धारण करें।
  • नित्य प्रति हनुमान चालीसा पढ़ें और भोजनालय में बैठकर भोजन करें। हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
  • काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।
  • सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।
  • किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।

पद्म कालसर्प योग

राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है। उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है। जातक को पुत्र संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। जातक का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में जातक को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। जातक के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। जातक को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक के गुप्त शत्रू भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण जातक का जीवन संघर्षमय बना रहता है। जातक द्वारा अर्जित सम्पत्तिा को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं। जातक को व्याधियां भी घेर लेती हैं। इलाज में अधिाक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। जातक वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि यह जातक आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत होता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।

अनुकूलन के उपाय -

शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।

शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्रा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्रा का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें। रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें। नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।

नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।

श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला 'नम: शिवाय' मंत्रा का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्रा व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।

महापद्म कालसर्प योग


राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धोखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी होता है। जातक का चरित्रा भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरा स्वप्नदेखता है। उसकी वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्रा में सफलता पाने वाला नेता होता है।

अनुकूलन के उपाय -

श्रावणमास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।

शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्रा धारण करके 18या 3 राहु बीज मंत्रा की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।

तक्षक कालसर्प योग


केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है। लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है। तक्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्तिा का सुख नहीं मिल पाता। या तो उसे पैतृक संपत्तिा मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है। जातक को अपने घर के अन्य सदस्यों की भी यथेष्ट सहानुभूति नहीं मिल पाती। साझेदारी में उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शत्रू षड़यंत्रों का शिकार बनना पड़ता है। जुए, सट्टे व लाटरी की प्रवृत्तिा उस पर हावी रहती है जिससे वह बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से मिलने वाली पीड़ा उसे निरंतर क्लेश देती रहती है। उसे गुप्तरोग की पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। किसी को दिया हुआ धान भी उसे समय पर वापस नहीं मिलता। यदि यह जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भलाई न सोच कर ओरों का भी हित सोचना शुरु कर दें साथ ही अपने मान-सम्मान के दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें तो उपरोक्त समस्याएं नहीं आती।

अनुकूलन के उपाय -

कालसर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें।

सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।

देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को उबालकर एक बार स्नान करें।

शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल वस्त्रा और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे।

कर्कोटक कालसर्प योग


केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। जैसा कि हम इस बात को पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं, ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करनेका भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्तिा से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। शत्रू षड़यंत्रा व अकाल मृत्यु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्न उपाय कर सकते हैं।

अनुकूलन के उपाय -

हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।

काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।

सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्ताू उनके बिलों पर डालें।

अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।

किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।

शंखचूड़ कालसर्प योग


केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। इसके साथ ही उसका अपना अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या उसे झेलनी पड़ती है। अधिक सोच के कारण शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इन सब कारणों के कारण सरकारी महकमों व मुकदमेंबाजी में भी उसका धन खर्च होता रहता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है, वह ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसके मित्र भी धोखाबाजी करने से बाज नहीं आते। उसका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। उसे हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए उसे अपना को अपनाना पड़ेगा, अपनो से प्यार करना होगा, धर्म की राह पर चलना होगा एवं मुंह में राम बगल में छूरी की भावना को त्यागना होगा तो जीवन में बहुत कम कठीनाइयों का सामना करना पड़ेगा। तब भी कठिनाईयां आति हैं तो निम्नलिखित उपाय बड़े लाभप्रद सिध्द होते हैं।

अनुकूलन के उपाय -

इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधिात जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्रा धारण करें श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्रा की तीन माला जाप करें। जाप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें। उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।

घातक कालसर्प योग


केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाये उसका जी नहीं भरता है। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। व्यवसाय के क्षेत्रा में उसे अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। साझेदारी के काम में भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्र भी धोखा देते रहते हैं। यदि यह जातक रिश्वतखोरी व दो नम्बर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा उसे जरूर मिलती है साथ ही राजनैतिक क्षेत्रा में बहुत सफलता प्राप्त करता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए जातक निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठा सकते हैं।

अनुकूलन के उपाय -

नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।

विषधार कालसर्प योग


केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधान उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं स्मरण शकित का प्राय: ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी मतान्तर या झगड़ा- झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जन्म स्थान से बहुत दूर निवास करता है या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करता रहता है। लेकिन कालान्तर में जातक के जीवन में स्थायित्व भी आता है। लाभ मार्ग में थोड़ा बहुत व्यवधान उपस्थित होता रहता है। वह व्यक्ति कभी-कभी बहुत चिंतातुर हो जाता है। धन सम्पत्तिा को लेकर कभी बदनामी की स्थिति भी पैदा हो जाती है या कुछ संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। उसे सर्वत्रा लाभ दिखलाई देता है पर लाभ मिलता नहीं। संतान पक्ष से थोड़ी-बहुत परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी कष्ट उठाना पड़ता है। उसके जीवन का अंत प्राय: रहस्यमय ढंग से होता है। उपरोक्त परेशानी होने पर निम्नलिखित उपाय करें।

अनुकूलन के उपाय -

श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।

सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।

सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।

 

शेषनाग कालसर्प योग


केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग कालसर्प योग बनता है। शास्त्राोक्त परिभाषा के दायरे में यह योग परिगणित नहीं है किंतु व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रु षड़यंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है। उनके सिर पर बदनामी की कटार हमेशा लटकी रहती है। शारीरिक व मानसिक व्याधियों से अक्सर उसे व्यथित होना पड़ता है और मानसिक उद्विग्नता की वजह से वह ऐसी अनाप-शनाप हरकतें करता है कि लोग उसे आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगते हैं। लोगों की नजर में उसका जीवन बहुत रहस्यमय बना रहता है। उसके काम करने का ढंग भी निराला होताहै। वह खर्च भी आमदनी से अधिक किया करता है। फलस्वरूप वह हमेशा लोगों का देनदार बना रहता है और कर्ज उतारने के लिए उसे जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। उसके जीवन में एक बार अच्छा समय भी आता है जब उसे समाज में प्रतिष्ठित स्थान मिलता है और मरणोपरांत उसे विशेष ख्याति प्राप्त होती है। इस योग की बाधाओं से त्राण पाने के लिए यदि निम्नलिखित उपाय किये जायें तो जातक को बहुत लाभ मिलता है।

अनुकूलन के उपाय -

किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय केदूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।

हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।

 ज्यादा जान ने के लिए संपर्क करे +918000456677 , www.jainanusthan.com





 


 

 

 



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Dreams of Mother Trishala

According to Jain scriptures, Queen Trishala, mother of Lord Mahavir saw fourteen beautiful and auspicious dreams on the midnight after conceiving the soul the Lord. They were:

1.  Elephant
2.   Bull
3.   Lion
4.   Goddess Laxmi
5.   Garland of Flowers
6.   Full Moon
7.   Sun
8.   Large Flag
9.   Silver Urn
10. Lotus Lake
11.  Milky Sea
12.  Celestial Air plane
13.  Heap of Gems
14. Smokeless Fire

After having such fourteen, wonderful dreams, queen Trishala woke up. Her dreams filled her with wonder. She had never had such dreams before. She narrated her dreams to king Siddhartha.The king called the soothsayers for the interpretation of dreams and they unanimously said, 'Sir, Her Highness will be blessed with a noble son. The dream augurs the vast spiritual realm, the child shall command. Her Highness will become the Universal Mother.'

Given below a brief narration of each dream followed by its interpretation:

INTERPRETATION OF HER DREAMS

1.  The first dream queen Trishala saw was that of an ELEPHANT. She saw a big, tall elephant. It had two pairs of tusks. The color of the elephant was white and its whiteness was superior to the color of marble. It was an auspicious elephant and was endowed with all the desirable marks of excellence.This dream indicates that her son will guide the spiritual chariot and save human beings from misery, greed and attraction of life.
2.  The second dream queen Trishala saw was that of a BULL. The color of the bull was also white, but it was brighter than white lotus. It glowed with beauty and radiated a light all around. It had a noble, grand and majestic hump. It had fine, bright, and soft hair on its body. Its horns were superb, and sharply pointed.This dream indicates that her son will become a spiritual teacher of great sages, kings and other great personalities.
3.  In her third dream queen Trishala saw a magnificent LION. Its claws were beautiful and well poised. The lion had a large well rounded head and extremely sharp edged teeth. Its lips were perfect, its color was red, and its eyes were sharp and glowing. Its tail was impressively long and well shaped. Queen Trishala saw this lion descending towards her and entering her mouth.This dream indicates that her son will be as powerful and strong as lion. He will be fearless, almighty, and capable of ruling the entire world.
4.  In her fourth dream queen Trishala saw was GODDESS LAXMI, the Goddess of wealth, prosperity and power. She was seated atop mountain Himalaya. Her feet had a golden sheen. She had delicate and soft fingers. Her black hair were tiny, soft and delicate. She wore rows of pearls interlaced with emerald and a garland of gold. A pair of earring hung over her shoulders. She held a pair of bright lotuses.This dream indicates that her son will attain great wealth, power and prosperity in this world.
5.  The fifth dream was that of a celestial GARLAND OF FLOWERS descending from the sky. It had the fragrance of different flowers. The whole universe was filled with its fragrance. The flowers were white and woven into a garland. They bloomed during all different seasons. Swarms of bumblebees flocked to it and they made humming sound around the region.This dream indicates that the fragrance of her son's teaching will spread across the entire universe.
6.  The sixth dream was that of a FULL MOON. It presented an auspicious sight. The moon was at its full glory. It awoke the sleeping lilies to bloom fully. It was bright like a well-polished mirror. The moon radiated whiteness like a swan. It inspired the oceans to surge skyward. The beautiful moon looked like a radiant beauty mark in the sky.This dream indicates that her son will have a great physical structure and be pleasing to all living beings of the universe.
7.  The seventh dream queen Trishala saw was that of a HUGE DISC OF SUN. The Sun was shining and destroying darkness. It was red like the flame of the forest. Lotuses bloomed at its touch. The Sun is the lamp of the sky and the lord of planets. The sun rose and put an end to the evil activities of the creatures that thrive at night.This dream indicates that teachings of her son will destroy anger, greed, ego, lust, and pride from the life of the people.
8.The eighth dream queen Trishala saw was that of a very LARGE FLAG flying on a golden stick. The flag fluttered softly and auspiciously in the gentle breeze. It was attracting the eyes of all. Peacock feathers decorated its crown. A radiant shining white lion was on it.This dream indicates that her son will be a great, noble and well respected leader of the family.
9.The ninth dream queen Trishala saw was that of a SILVER URN (Kalash) full of crystal clear water. It was a magnificent, beautiful and bright pot. It shone like gold and was a joy to behold. It was garlanded with strings of lotuses and other flowers. The pot was holy and untouched by anything sinful.This dream indicates that her son will be perfect with all virtues.
        10.In her tenth dream queen Trishala saw a LOTUS LAKE (Padma Sagar). The thousands of  lotuses were floating on the lake, which opened at the touch of the Sun's rays. The lotuses imparted asweet fragrance. There were swarms of fish in the lake. Its water glowed like a golden flame. The lotus leaves were floating on the water.This dream indicates that her son will help liberate human beings that are entangled in the cycle of birth, death and misery and rise high just like the lotus.
11.The eleventh dream queen Trishala saw a MILKY SEA. Its water swell out in all directions, rising to great heights with turbulent motion. Winds blew and created waves. A great commotion was created in the sea by huge sea animals. Great rivers fell into the sea, producing huge whirlpools.This dream indicates that her son will navigate through Life Ocean of birth, death and misery leading to Moksha or Liberation.
12.In her twelfth dream, queen Trishala saw a CELESTIAL AIRPLANE. The airplane had eight thousand magnificent gold pillars studded with gems. The plane was framed with sheets of gold and garlands of pearls. It was decorated with rows of murals depicting bulls, horses, men, crocodiles, birds, children, deer, elephants, wild animals and lotus flowers. The plane resounded with celestial music. It was saturated with an intoxicating aroma of incense fumes. It was illuminated with bright silvery light.This dream indicates that all gods and goddesses in heaven will respect and salute to his spiritual teaching and will obey him.
13.In her thirteenth dream queen Trishala saw a great heap of GEMS, as high as Mount MERU. There were gems and precious stones of all types and kinds. These gems were heaped over the earth and they illuminated the entire sky.This dream indicates that her son will have infinite virtues and wisdom.
14.In her fourteenth dream queen Trishala saw a SMOKE LESS FIRE. The fire burned with great intensity and emitted a radiant glow. Great quantities of pure Ghee and honey were being poured into the fire. Flames of varying intensity, glow and colour were emitted from it.This dream indicates that the wisdom of her son will excel the wisdom of all other great people.
After nine months and fourteen days, Queen Trishala delivered a baby boy. The boy was named Vardhaman meaning ever increasing.Immediately after the birth of prince Vardhaman, Indra, the King of heaven, arrived with other gods and goddesses. He hypnotized the whole city including mother Trishala and King Siddharth. He took the baby Vardhaman to mount Meru and bathed him. He proclaimed peace and harmony by reciting BRUHAT SHANTI during the first bathing ceremony of the newborn Tirthankara.After renunciation and realization of Absolute self-knowledge, Prince Vardhaman became Lord Mahavir, the twenty-fourth and the last Tirthankara of Jain religion of the current Avsarpirni Kaal (descending phase of the wheel of time). As per Jainism time is in form of a wheel with six spokes, presently we are in between fifth and sixth spokes, this period is known as Aara. That means we are in pancham Aara. Life span of Mahavir Swami was in fourth Aara.



Friday, February 12, 2016

कुंडली मे धन योग ******


* जब कुंडली के दूसरे भाव में शुभ ग्रह बैठा हो तो
जातक के पास अपार पैसा रहता है।
* जन्म कुंडली के दूसरे भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो
तब भी भरपूर धन के योग बनते हैं।
* चूंकि दूसरे भाव का स्वामी यानी द्वितीयेश को
धनेश माना जाता है अत: उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि
हो तब भी व्यक्ति को धन की कमी नहीं रहती।
* दूसरे भाव का स्वामी यानी द्वितीयेश के साथ
कोई शुभ ग्रह बैठा हो तब भी व्यक्ति के पास खूब
पैसा रहता है।
* जब बृहस्पति यानी गुरु कुंडली के केंद्र में स्थित हो।
* बुध पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो। (5,7,9)
* बृहस्पति लाभ भाव (ग्यारहवें भाव) में स्थित हो।
* द्वितीयेश उच्च राशि का होकर केंद्र में बैठा हो।
* लग्नेश लग्न स्थान का स्वामी जहां बैठा हो, उससे
दूसरे भाव का स्वामी उच्च राशि का होकर केंद्र में
बैठा हो।
* धनेश व लाभेश उच्च राशिगत हों।
* चंद्रमा व बृहस्पति की किसी शुभ भाव में युति हो।
* बृहस्पति धनेश होकर मंगल के साथ हो।
* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ केंद्र में हों।
* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ त्रिकोण में हों।
* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ लाभ भाव में हों।
* लग्न से तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह
बैठे हों।
* सप्तमेश दशम भाव में अपनी उच्च राशि में हो।
* सप्तमेश दशम भाव में हो तथा दशमेश अपनी उच्च
राशि में नवमेश के साथ हो।

Tuesday, February 9, 2016

पुरी में जगन्नाथ मंदिर के 8 अजूबे इस प्रकार है


1.मन्दिर के ऊपर झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराते हुए।
2.पुरी में किसी भी जगह से आप मन्दिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देखेगे तो वह आपको सामने ही लगा दिखेगा।
3.सामान्य दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है, और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पूरी में इसका उल्टा होता है.
4.पक्षी या विमानों मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पायेगें।
5.मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य है.
6.मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी यह व्यर्थ नहीं जाएगी, चाहे कुछ हजार लोगों से 20 लाख लोगों को खिला सकते हैं.
7. मंदिर में रसोई (प्रसाद)पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे पर रखा जाता है और लकड़ी पर पकाया जाता है. इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकते जाती है।
8.मन्दिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि नहीं सुन सकते. आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें जब आप इसे सुन सकते हैं. इसे शाम को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
साथ में यह भी जाने:-
मन्दिर का रसोई घर दुनिया का सबसे बड़ा रसोइ घर है।
प्रति दिन सांयकाल मन्दिर के ऊपर लगी ध्वजा को मानव द्वारा उल्टा चढ़ कर बदला जाता है।
मन्दिर का क्षेत्रफल चार लाख वर्ग फिट में है।
मन्दिर की ऊंचाई 214 फिट है।
विशाल रसोई घर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को बनाने 500 रसोईये एवं 300 उनके सहयोगी काम करते है।
" जय जगन्नाथ
जय जय जगन्नाथ "

जैनो के वर्तमान चौबीसी भगवान का परीचय👇



1 - श्री वृषभनाथ/आदिनाथ जी

माता : मरूदेवी
पिता : राजा नाभिराय
गर्भ : आषाढ़ कृष्णा 2
जन्म : चैत्र कृष्णा 9
तप : चैत्र कृष्णा 9
केवलज्ञान : फागुन कृष्णा 11
निर्वाण : माघ कृष्णा 14
जन्मस्थली : अयोध्या
निर्वाणस्थली : अष्टापद (कैलाशपर्वत)
आयु : 84 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 500 धनुष
चिन्ह : बैल
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

2 - श्री अजितनाथ जी

माता : रानी विजय
पिता : राजा जीतशत्रु
गर्भ : ज्येष्ठ कृष्णा 15
जन्म : माघ शुक्ल 10
तप : माघ शुक्ल 10
केवलज्ञान : पौष शुक्ल 11
निर्वाण : चैत्र शुक्ल 5
जन्मस्थली : अयोध्या
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 72 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 450 धनुष
चिन्ह : हाथी
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

3 - श्री संभवनाथ जी

माता : रानी सुसेना
पिता : राजा जितारी
गर्भ : फाल्गुन शुक्ल 8
जन्म :कार्तिक शुक्ल 15
तप : मार्गशीर्ष शुक्ल 15
केवलज्ञान : कार्तिक कृष्णा 4
निर्वाण : चैत्र शुक्ल 6
जन्मस्थली : श्रावस्ती
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 60 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 400 धनुष
चिन्ह : घोडा/अश्व
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

4 - श्री अभिनन्दननाथ जी

माता : रानी संवर
पिता : राजा सिद्धार्थ
गर्भ : वैशाख शुक्ल 6
जन्म : माघ शुक्ल 12
तप : माघ शुक्ल 12
केवलज्ञान : पौष शुक्ल 14
निर्वाण :वैशाख शुक्ल 6
जन्मस्थली : अयोध्या
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 50 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 350 धनुष
चिन्ह : बन्दर/वानर
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

5 - श्री सुमतिनाथ जी

माता : रानी सुमंगला
पिता : राजा मेघप्रभ
गर्भ : श्रावण शुक्ल 2
जन्म : माघ शुक्ल 12
तप : बैशाख शुक्ल 9
केवलज्ञान : पौष शुक्ल 15
निर्वाण : चैत्र शुक्ल 10
जन्मस्थली : अयोध्या
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 40 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 300 धनुष
चिन्ह : चकवा
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

6 - श्री पद्मप्रभ् जी

माता : रानी सुषमा
पिता : राजा श्रीधर
गर्भ : माघ कृष्णा 6
जन्म : कार्तिक शुक्ल 13
तप : कार्तिक शुक्ल 13
केवलज्ञान : चैत्र शुक्ल 15
निर्वाण : फाल्गुन कृष्णा 4
जन्मस्थली : कौशाम्बी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 30 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 250 धनुष
चिन्ह : लाल कमल
वर्ण : लाल

7 - श्री सुपार्श्वनाथ जी

माता : रानी पृथ्वी
पिता : राजा सुप्रतिष्ठ
गर्भ : भाद्रपद शुक्ल 6
जन्म : जयेष्ठ शुक्ल 12
तप : जयेष्ठ शुक्ल 12
केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा 6
निर्वाण : फाल्गुन कृष्णा 7
जन्मस्थली : वाराणसी (बनारस)
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 20 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 200 धनुष
चिन्ह : स्वस्तिक
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

8 - श्री चन्द्रप्रभ् जी

माता :-रानी लक्ष्मणा
पिता :- राजा महासेन
गर्भ :चैत्र कृष्णा 5
जन्म : पौष कृष्णा 11
तप : पौष कृष्णा 11
केवलज्ञान : फाल्गुन कृष्णा 7
निर्वाण :फाल्गुन शुक्ल 7
जन्मस्थली :चंद्रपुरी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 10 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 150 धनुष
चिन्ह : चन्द्रमा
वर्ण : श्वेत

9 - श्री पुष्पदंत जी

माता : रानी रामा (सुप्रिया)
पिता : राजा सुग्रीव
गर्भ :फाल्गुन कृष्णा 9
जन्म : मार्गशीर्ष शुक्ल 1
तप : मार्गशीर्ष शुक्ल 1
केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ल 2
निर्वाण : आश्विन शुक्ल 8
जन्मस्थली : काकन्दी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 2 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 100 धनुष
चिन्ह : मगर
वर्ण : श्वेत

10 - श्री शीतलनाथ जी

माता : रानी सुनंदा
पिता : राजा दृढ़रथ
गर्भ : चैत्र कृष्णा 8
जन्म : माघ कृष्णा 12
तप : माघ कृष्णा 12
केवलज्ञान : पौष कृष्णा 14
निर्वाण : अश्विन शुक्ल 8
जन्मस्थली : भद्रिकापुरी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 1 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 90 धनुष
चिन्ह : कल्प वृक्ष
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

11 - श्री श्रेयांसनाथ जी

माता : रानी विष्णुश्री
पिता : राजा विष्णुराज
गर्भ : जयेष्ठ कृष्णा 6
जन्म : फाल्गुन कृष्णा 11
तप : फाल्गुन कृष्णा 11
केवलज्ञान : फागुन कृष्णा 11
निर्वाण : श्रावण शुक्ल 15
जन्मस्थली : सिंहपुरी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 84 लाख वर्ष
ऊंचाई : 80 धनुष
चिन्ह : गेंडा
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

12 - श्री वासुपूज्य जी

माता : रानी विजय
पिता : राजा वासु
गर्भ : आषाढ़ कृष्णा 6
जन्म : फाल्गुन कृष्णा 14
तप : फाल्गुन कृष्णा 14
केवलज्ञान : भाद्रपद कृष्णा 2
निर्वाण : भाद्रपद शुक्ल 14
जन्मस्थली : चम्पापुरी
निर्वाणस्थली : चम्पापुरी
आयु : 70 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 70 धनुष
चिन्ह : भैंसा
वर्ण : लाल

13 - श्री विमलनाथ जी

माता : रानी जयश्यामा
पिता : राजा कृतवर्मा
गर्भ : जयेष्ठ कृष्णा 10
जन्म : माघ शुक्ल 14
तप : माघ शुक्ल 14
केवलज्ञान : माघ शुक्ल 6
निर्वाण : आषाढ़ कृष्णा 6
जन्मस्थली : कम्पिल
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 60 लाख वर्ष
ऊंचाई : 60 धनुष
चिन्ह : सूकर/सूअर
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

14 - श्री अनंतनाथ जी

माता : रानी सुयशा
पिता : राजा सिंहसेन
गर्भ : कार्तिक कृष्णा 1
जन्म : जयेष्ठ कृष्णा 12
तप : जयेष्ठ कृष्णा 12
केवलज्ञान : चैत्र कृष्णा 15
निर्वाण : चैत्र कृष्णा 4
जन्मस्थली : अयोध्या
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 30 लाख वर्ष
ऊंचाई : 50 धनुष
चिन्ह : सेही
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

15 - श्री धर्मनाथ जी

माता : रानी सुव्रता
पिता : राजा भानु
गर्भ : वैशाख शुक्ल 8
जन्म : माघ शुक्ल 13
तप : माघ शुक्ल 13
केवलज्ञान : पौष शुक्ल 15
निर्वाण : जयेष्ठ शुक्ल 4
जन्मस्थली : रत्नपुरी
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 10 लाख पूर्व वर्ष
ऊंचाई : 45 धनुष
चिन्ह : वज्रदण्ड
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

16 - श्री शांतिनाथ जी

माता : रानी अचिरा
पिता : राजा विश्वसेन
गर्भ : भाद्रपद कृष्णा 7
जन्म : ज्येष्ठ कृष्णा 14
तप : ज्येष्ठ कृष्णा 14
केवलज्ञान : पौष शुक्ल 10
निर्वाण : ज्येष्ठ कृष्णा 14
जन्मस्थली : हस्तिनापुर
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 1 लाख वर्ष
ऊंचाई : 40 धनुष
चिन्ह : हिरण
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

17 - श्री कुन्थुनाथ जी

माता : रानी श्रीदेवी
पिता : राजा सूर्या
गर्भ : श्रावण कृष्णा 10
जन्म : वैशाख शुक्ल 1
तप : वैशाख शुक्ल 1
केवलज्ञान : चैत्र शुक्ल 3
निर्वाण : वैशाख शुक्ल 1
जन्मस्थली : हस्तिनापुर
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 95,000 वर्ष
ऊंचाई : 35 धनुष
चिन्ह : बकरा
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

18 - श्री अरहनाथ जी

माता : रानी मित्रा
पिता : राजा सुदर्शन
गर्भ : फाल्गुन शुक्ल 3
जन्म : मार्गशीर्ष शुक्ल 14
तप : मार्गशीर्ष शुक्ल 14
केवलज्ञान : कार्तिक शुक्ल 12
निर्वाण : चैत्र शुक्ल 11
जन्मस्थली : हस्तिनापुर
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 84,000 वर्ष
ऊंचाई : 30 धनुष
चिन्ह : मछली
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

19 - श्री मल्लीनाथ जी

माता : रानी रक्षिता
पिता : राजा कुम्भ
गर्भ : चैत्र शुक्ल 1
जन्म : मार्गशीर्ष शुक्ल 11
तप : मार्गशीर्ष शुक्ल 11
केवलज्ञान : पौष कृष्णा 2
निर्वाण : फाल्गुन शुक्ल 5
जन्मस्थली : मिथिला
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 55,000 वर्ष
ऊंचाई : 25 धनुष
चिन्ह : कलश
वर्ण : नीला

20 - श्री मुनिसुव्रतनाथ जी

माता : रानी पद्मावती
पिता : राजा सुमित्र
गर्भ : श्रावण कृष्णा 2
जन्म : वैशाख कृष्णा 10
तप : वैशाख कृष्णा 10
केवलज्ञान : वैशाख कृष्णा 9
निर्वाण : फाल्गुन कृष्णा 12
जन्मस्थली : राजगृही
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 30,000 वर्ष
ऊंचाई : 20 धनुष
चिन्ह : कछुवा
वर्ण : काला

21 - श्री नमीनाथ जी

माता : रानी वप्रा
पिता : राजा विजय
गर्भ : अश्विन कृष्णा 2
जन्म : आषाढ़ कृष्णा 10
तप : आषाढ़ कृष्णा 10
केवलज्ञान : मार्गशीर्ष शुक्ल 11
निर्वाण : वैशाख कृष्णा 14
जन्मस्थली : मिथिला
निर्वाणस्थली : सम्मेद शिखर
आयु : 10,000 वर्ष
ऊंचाई : 15 धनुष
चिन्ह : नील कमल
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

22 - श्री नेमीनाथ जी

माता : रानी शिवादेवी
पिता : राजा समुद्रविजय
गर्भ : कार्तिक शुक्ल 6
जन्म : श्रावण शुक्ल 6
तप : श्रावण शुक्ल 6
केवलज्ञान : अश्विन शुक्ल 1
निर्वाण : आषाढ़ शुक्ल 8
जन्मस्थली : सूर्यपुर (द्वारका)
निर्वाणस्थली : गिरनार जी
आयु : 1,000 वर्ष
ऊंचाई : 10 धनुष
चिन्ह : शंख
वर्ण : काला

23 - श्री पार्श्वनाथ जी

माता : रानी वामादेवी
पिता : राजा अश्वसेन
गर्भ : वैशाख कृष्णा 2
जन्म : पौष कृष्णा 11
तप : पौष कृष्णा 11
केवलज्ञान : चैत्र कृष्णा 4
निर्वाण : श्रावण शुक्ल 7
जन्मस्थली : काशी (बनारस)
निर्वाणस्थली :समेद शिखरजी
आयु : 100 वर्ष
ऊंचाई : 9 हाथ
चिन्ह : सर्प/सांप
वर्ण : हरा

24 - श्री महावीर स्वामी जी

माता : रानी त्रिशला
पिता : राजा सिद्धार्थ
गर्भ : आषाढ़ शुक्ल 6
जन्म :चैत्र शुक्ल 13
तप : मार्गशीर्ष कृष्णा 10
केवलज्ञान : वैसाख शुक्ल 10
निर्वाण : कार्तिक कृष्णा 15
जन्मस्थली : कुण्डलपुर
निर्वाणस्थली : पावापुरी
आयु : 72 वर्ष
ऊंचाई : 7 हाथ
चिन्ह : सिंह/शेर
वर्ण : स्वर्ण/कंचन

इस पोस्ट को सभी को भेजो।।
🙏🌷जय जिनेन्द्र🌷🙏

Monday, February 8, 2016

क्या हे रहस्य नवरात्री के पीछे ?

आओ जानें क्यों कहते हैं इसे गुप्त नवरात्र सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनी👣
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोऽस्तु ते॥माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी देवशयनी जब भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होतें हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं उस समय पृथ्वी पर रूद्र वरुण यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है सतयुग में चैत्र नवरात्रत्रेता में आषाढ़ नवरात्र द्वापर में माघ कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर के चारों वेद प्राप्त कर लिए तब वह उपद्रव करने लगा वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध कियादस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र' मनाया जाने लगा इस गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना भी की जाती है यह साधनाएं बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती हैं दुनियां में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्रयंबकेश्वर (नासिक) और उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ श्मशान गुप्त नवरात्रि में यहां दूर-दूर से साधक गुप्त साधनाएं करने यहां आते हैं नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजििनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है, वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है
शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं इन्हीं कारणों से माघ मास की नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र
गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई,और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं,जुआरी है,लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं,उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें। तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है पाकिस्तान स्थित हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए। गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है हां, इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है ।धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता हैआयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है 💫देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं👣 नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं जय माता दीदेहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में 👣दस महाविद्याओं की साधना की जाती है
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक👤 महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है 🌏पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली 🌐गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ❄ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है जय माता दी

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।
2. गौ माता में तैंतीस कोटी देवी देवताओं का वास है ।
3. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।
4. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।
5. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।
6. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।
7. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।
8. गौ माता के मुत्र में गंगाजी का वास होता है ।
9. गौ माता के गोबर से बने उपलों का रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है ।
10. गौ माता के एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।
11. गाय इस धरती पर साक्षात देवता है ।
12. गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है । मनोकामना पूर्ण करने वाली है ।
13. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है ।
14. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।
15. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है । उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।
16. गौ माता का दूध अमृत है ।
17. गौ माता धर्म की धुरी है ।
गौ माता के बिना धर्म कि कल्पना नहीं की जा सकती ।
18. गौ माता जगत जननी है ।
19. गौ माता पृथ्वी का रूप है ।
20. गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है । गौ माता के बिना देवों वेदों की पूजा अधुरी है ।
21. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।
22. गौ माता से ही मनुष्यों के गौत्र की स्थापना हुई है ।
23. गौ माता चौदह रत्नों में एक रत्न है ।
24. गौ माता साक्षात् मां भवानी का रूप है ।
25. गौ माता के पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते हैं ।
26. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।
27. गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती ।
28. तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है । वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है ।
28. गौ माता के गोबर से ईंधन तैयार होता है ।
29. गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यों की आराध्य है; इष्ट देव है ।
30. साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है ।
31. गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है ।
32. गौ माता में दिव्य शक्तियां होने से संसार का संतुलन बना रहता है ।
33. गाय माता के गौवंशो से भूमि को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है ।
34. गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है । गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है ।
35. जहां गौ माता निवास करती है वह स्थान तीर्थ धाम बन जाता है ।
36. गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है ।
37. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।
38. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।
39. गाय माता आनंदपूर्वक सासें लेती है; छोडती है । वहां से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है ।
40. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे ।
41. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।
42. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।
43. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।
44. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।
45. गाय इस संसार का प्राण है ।
46. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।
47. गाय धार्मिक ; आर्थिक ; सांस्कृतिक व अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है ।
48. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है । हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं ।
49. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा ।
50. जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।
51. गौ माता सर्व सुखों की दातार है ।
हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं ।